Varsha ne aaj vidai li, वर्षा ने आज विदाई ली, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
वर्षा ने आज विदाई ली जाड़े ने कुछ अंगड़ाई ली
प्रकृति ने पावस बूँदो से रक्षण की नव भरपाई ली।
सूरज की किरणों के पथ से काले काले आवरण हटे
डूबे टीले महकन उठ्ठी दिन की रातों के चरण हटे।
पहले उदार थी गगन वृष्टि अब तो उदार हो उठे खेत
यह ऊग ऊग आई बहार वह लहराने लग गई रेत।
Varsha ne aaj vidai li
ऊपर से नीचे गिरने के दिन रात गए छवियाँ छायीं
नीचे से ऊपर उठने की हरियाली पुन: लौट आई।
अब पुन: बाँसुरी बजा उठे ब्रज के यमुना वाले कछार
धुल गए किनारे नदियों के धुल गए गगन में घन अपार।
अब सहज हो गए गति के वृत जाना नदियों के आर पार
अब खेतों के घर अन्नों की बंदनवारें हैं द्वार द्वार।
नालों नदियों सागरो सरों ने नभ से नीलांबर पाए
खेतों की मिटी कालिमा उठ वे हरे हरे सब हो आए।
मलयानिल खेल रही छवि से पंखिनियों ने कल गान किए
कलियाँ उठ आईं वृन्तों पर फूलों को नव मेहमान किए।
घिरने गिरने के तरल रहस्यों का सहसा अवसान हुआ
दाएँ बाएँ से उठी पवन उठते पौधों का मान हुआ।
आने लग गई धरा पर भी मौसमी हवा छवि प्यारी की
यादों में लौट रही निधियाँ मनमोहन कुंज विहारी की।
माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ
एक तुम हो | लड्डू ले लो | दीप से दीप जले |
मैं अपने से डरती हूँ सखि | कैदी और कोकिला | कुंज कुटीरे यमुना तीरे |
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे | सिपाही | वायु |
वरदान या अभिशाप? | बलि-पन्थी से | जवानी |
अमर राष्ट्र | उपालम्भ | मुझे रोने दो |
तुम मिले | बदरिया थम-थमकर झर री ! | यौवन का पागलपन |
झूला झूलै री | घर मेरा है? | तान की मरोर |
पुष्प की अभिलाषा | तुम्हारा चित्र | दूबों के दरबार में |
बसंत मनमाना | तुम मन्द चलो | जागना अपराध |
यह किसका मन डोला | चलो छिया-छी हो अन्तर में | भाई, छेड़ो नही, मुझे |
उस प्रभात, तू बात न माने | ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा | मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक |
आज नयन के बँगले में | यह अमर निशानी किसकी है? | मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी |
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं |
क्या
आकाश उतर आया है
| कैसी है पहिचान तुम्हारी |
नयी-नयी कोपलें | ये प्रकाश ने फैलाये हैं | फुंकरण कर, रे समय के साँप |
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं | जाड़े की साँझ | समय के समर्थ अश्व |
मधुर! बादल, और बादल, और बादल | जीवन, यह मौलिक महमानी | उठ महान |
ये वृक्षों में उगे परिन्दे | बोल तो किसके लिए मैं | वेणु लो, गूँजे धरा |
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने | गाली में गरिमा घोल-घोल | प्यारे भारत देश |
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा |
किरनों
की शाला बन्द हो गई चुप-चुप
| गंगा की विदाई |
वर्षा ने आज विदाई ली | ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें |
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