Gali me garima ghol, गाली में गरिमा घोल-घोल, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
गाली में गरिमा घोल-घोल
क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल
कितने मीठे, कितने प्यारे
अर्पण के अनजाने विरोध
कैसे नारद के भक्ति-सूत्र
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!
हिल उठे झूलने भरे झोल
गाली में गरिमा घोल-घोल।
जब बेढंगे हो उठे द्वार
जब बे काबू हो उठा ज्वार
इसने जिस दिन घनश्याम कहा
वह बोल उठा परवर-दिगार।
Gali me garima ghol
मणियों का भी क्या बने मोल।
गाली में गरिमा घोल-घोल।
ये बोले इनका मृदुल हास्य
वे कहें कि उनके मृदुल बोल
भूगोल चुटकियाँ देता है
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।
कुछ तो अपने फरफन्द खोल
गाली में गरिमा घोल-घोल।।
माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ
एक तुम हो | लड्डू ले लो | दीप से दीप जले |
मैं अपने से डरती हूँ सखि | कैदी और कोकिला | कुंज कुटीरे यमुना तीरे |
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे | सिपाही | वायु |
वरदान या अभिशाप? | बलि-पन्थी से | जवानी |
अमर राष्ट्र | उपालम्भ | मुझे रोने दो |
तुम मिले | बदरिया थम-थमकर झर री ! | यौवन का पागलपन |
झूला झूलै री | घर मेरा है? | तान की मरोर |
पुष्प की अभिलाषा | तुम्हारा चित्र | दूबों के दरबार में |
बसंत मनमाना | तुम मन्द चलो | जागना अपराध |
यह किसका मन डोला | चलो छिया-छी हो अन्तर में | भाई, छेड़ो नही, मुझे |
उस प्रभात, तू बात न माने | ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा | मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक |
आज नयन के बँगले में | यह अमर निशानी किसकी है? | मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी |
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं |
क्या
आकाश उतर आया है
| कैसी है पहिचान तुम्हारी |
नयी-नयी कोपलें | ये प्रकाश ने फैलाये हैं | फुंकरण कर, रे समय के साँप |
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं | जाड़े की साँझ | समय के समर्थ अश्व |
मधुर! बादल, और बादल, और बादल | जीवन, यह मौलिक महमानी | उठ महान |
ये वृक्षों में उगे परिन्दे | बोल तो किसके लिए मैं | वेणु लो, गूँजे धरा |
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने | गाली में गरिमा घोल-घोल | प्यारे भारत देश |
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा |
किरनों
की शाला बन्द हो गई चुप-चुप
| गंगा की विदाई |
वर्षा ने आज विदाई ली | ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें |
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