Basant Manmana Kavita, बसंत मनमाना, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
चादर-सी ओढ़ कर ये छायाएँ
तुम कहाँ चले यात्री, पथ तो है बाएँ।
धूल पड़ गई है पत्तों पर डालों लटकी किरणें छोटे-छोटे पौधों को चर रहे बाग में हिरणें, दोनों हाथ बुढ़ापे के थर-थर काँपे सब ओर किन्तु आँसुओं का होता है कितना पागल ज़ोर- बढ़ आते हैं, चढ़ आते हैं, गड़े हुए हों जैसे उनसे बातें कर पाता हूँ कि मैं कुछ जैसे-तैसे। पर्वत की घाटी के पीछे लुका-छिपी का खेल खेल रही है वायु शीश पर सारी दनिया झेल।
Basant Manmana Kavita
छोटे-छोटे खरगोशों से उठा-उठा सिर बादल किसको पल-पल झांक रहे हैं आसमान के पागल? ये कि पवन पर, पवन कि इन पर, फेंक नज़र की डोरी खींच रहे हैं किसका मन ये दोनों चोरी-चोरी? फैल गया है पर्वत-शिखरों तक बसन्त मनमाना, पत्ती, कली, फूल, डालों में दीख रहा मस्ताना।
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