Ghar mera hai Kavita, घर मेरा है?, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
क्या कहा कि यह घर मेरा है?
जिसके रवि उगें जेलों में,
संध्या होवे वीरानों मे,
उसके कानों में क्यों कहने
आते हो? यह घर मेरा है?
है नील चंदोवा तना कि झूमर झालर उसमें चमक रहे, क्यों घर की याद दिलाते हो, तब सारा रैन-बसेरा है? जब चाँद मुझे नहलाता है, सूरज रोशनी पिन्हाता है, क्यों दीपक लेकर कहते हो, यह तेरा दीपक लेकर कहते हो, यह तेरा है, यह मेरा है?
Ghar mera hai Kavita
ये आए बादल घूम उठे, ये हवा के झोंके झूम उठे, बिजली की चमचम पर चढ़कर गीले मोती भू चूम उठे; फिर सनसनाट का ठाठ बना, आ गई हवा, कजली गाने, आ गई रात, सौगात लिए, ये गुलसबो मासूम उठे। इतने में कोयल बोल उठी, अपनी तो दुनिया डोल उठी, यह अंधकार का तरल प्यार सिसकें बन आयीं जब मलार; मत घर की याद दिलाओ तुम अपना तो काला डेरा है।
Ghar mera hai Kavita
कलरव, बरसात, हवा ठंडी,
मीठे दाने, खारे मोती,
सब कुछ ले, लौटाया न कभी,
घरवाला महज़ लुटेरा है।
हो मुकुट हिमालय पहनाता सागर जिसके पद धुलवाता, यह बंधा बेड़ियों में मंदिर, मस्जिद, गुस्र्द्वारा मेरा है। क्या कहा कि यह घर मेरा है?
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