Jhula jhule ri Kavita (झूला झूलै री कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Ad:

Jhula jhule ri Kavita, झूला झूलै री, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.

संपूरन कै संग अपूरन झूला झूलै री,
दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री।
गड़े हिंडोले, वे अनबोले मन में वृन्दावन में,
निकल पड़ेंगे डोले सखि अब भू में और गगन में,
ऋतु में और ऋचा में कसके रिमझिम-रिमझिम बरसन,
झांकी ऐसी सजी झूलना भी जी भूलै री,
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।

Jhula jhule ri Kavita

रूठन में पुतली पर जी की जूठन डोलै री,
अनमोली साधों में मुरली मोहन बोलै री,
करतालन में बँध्यो न रसिया, वह तालन में दीख्यो,
भागूँ कहाँ कलेजौ कालिंदी मैं हूलै री।
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।

नभ के नखत उतर बूँदों में बागों फूल उठे री,
हरी-हरी डालन राधा माधव से झूल उठे री,
आज प्रणव ने प्रणय भीख से कहा कि नैन उठा तो,
साजन दीख न जाय संभालो जरा दुकूलै री,
दिन तो दिन, कलमुँही साँझ भी अब तो फूलै री,
संपूरन के संग अपूरन झूला झूलै री।

इसे भी पढ़ें: माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

माखनलाल चतुर्वेदी की कुछ प्रतिनिधि कवितायेँ

एक तुम हो   लड्डू ले लो   दीप से दीप जले  
मैं अपने से डरती हूँ सखि   कैदी और कोकिला   कुंज कुटीरे यमुना तीरे  
गिरि पर चढ़ते, धीरे-धीरे सिपाही वायु
वरदान या अभिशाप?   बलि-पन्थी से   जवानी
अमर राष्ट्र   उपालम्भ   मुझे रोने दो  
तुम मिले   बदरिया थम-थमकर झर री ! यौवन का पागलपन  
झूला झूलै री   घर मेरा है?   तान की मरोर  
पुष्प की अभिलाषा   तुम्हारा चित्र   दूबों के दरबार में  
बसंत मनमाना   तुम मन्द चलो   जागना अपराध  
यह किसका मन डोला   चलो छिया-छी हो अन्तर में   भाई, छेड़ो नही, मुझे  
उस प्रभात, तू बात न माने   ऊषा के सँग, पहिन अरुणिमा   मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक  
आज नयन के बँगले में   यह अमर निशानी किसकी है?   मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी  
अंजलि के फूल गिरे जाते हैं   क्या आकाश उतर आया है   कैसी है पहिचान तुम्हारी  
नयी-नयी कोपलें   ये प्रकाश ने फैलाये हैं   फुंकरण कर, रे समय के साँप  
संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं   जाड़े की साँझ   समय के समर्थ अश्व    
मधुर! बादल, और बादल, और बादल   जीवन, यह मौलिक महमानी   उठ महान  
ये वृक्षों में उगे परिन्दे   बोल तो किसके लिए मैं   वेणु लो, गूँजे धरा  
इस तरह ढक्कन लगाया रात ने   गाली में गरिमा घोल-घोल   प्यारे भारत देश  
साँस के प्रश्नचिन्हों, लिखी स्वर-कथा   किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चुप   गंगा की विदाई  
वर्षा ने आज विदाई ली   ये अनाज की पूलें तेरे काँधें झूलें    

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.