Vayu Kavita Makhanlal Chaturvedi, वायु माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है.
चल पडी चुपचाप सन-सन-सन हवा, डालियों को यों चिढाने-सी लगी, आंख की कलियां, अरी, खोलो जरा, हिल स्वपतियों को जगाने-सी लगी,
Vayu Kavita Makhanlal Chaturvedi
पत्तियों की चुटकियां झट दीं बजा, डालियां कुछ ढुलमुलाने-सी लगीं। किस परम आनंद-निधि के चरण पर, विश्व-सांसें गीत गाने-सी लगीं। जग उठा तरु-वृंद-जग, सुन घोषणा,
पंछियों में चहचहाट मच गई, वायु का झोंका जहां आया वहां- विश्व में क्यों सनसनाहट मच गई?
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