Kisi ka deep Kavita, किसी का दीप निष्ठुर हूँ, महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) द्वारा लिखित कविता है.
शलभ मैं शपमय वर हूँ!
किसी का दीप निष्ठुर हूँ!
ताज है जलती शिखा;
चिनगारियाँ शृंगारमाला;
ज्वाल अक्षय कोष सी
अंगार मेरी रंगशाला ;
नाश में जीवित किसी की साध सुन्दर हूँ!
Kisi ka deep Kavita
नयन में रह किन्तु जलती
पुतलियाँ आगार होंगी;
प्राण में कैसे बसाऊँ
कठिन अग्नि समाधि होगी;
फिर कहाँ पालूँ तुझे मैं मृत्यु-मन्दिर हूँ!
हो रहे झर कर दृगों से
अग्नि-कण भी क्षार शीतल;
पिघलते उर से निकल
निश्वास बनते धूम श्यामल;
एक ज्वाला के बिना मैं राख का घर हूँ!
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