Ali main kan kan ko jan chali Kavita (अलि! मैं कण-कण को जान चली कविता)- महादेवी वर्मा

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Ali main kan kan ko jan chali Kavita, अलि! मैं कण-कण को जान चली, महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) द्वारा लिखित कविता है.

अलि, मैं कण-कण को जान चली
सबका क्रन्दन पहचान चली

जो दृग में हीरक-जल भरते
जो चितवन इन्द्रधनुष करते
टूटे सपनों के मनको से
जो सुखे अधरों पर झरते,
जिस मुक्ताहल में मेघ भरे
जो तारो के तृण में उतरे,
मै नभ के रज के रस-विष के
आँसू के सब रँग जान चली।

जिसका मीठा-तीखा दंशन,
अंगों मे भरता सुख-सिहरन,
जो पग में चुभकर, कर देता
जर्जर मानस, चिर आहत मन;
जो मृदु फूलो के स्पन्दन से
जो पैना एकाकीपन से,
मै उपवन निर्जन पथ के हर
कंटक का मृदु मत जान चली।

Ali main kan kan ko jan chali Kavita

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गति का दे चिर वरदान चली।
जो जल में विद्युत-प्यास भरा
जो आतप मे जल-जल निखरा,
जो झरते फूलो पर देता
निज चन्दन-सी ममता बिखरा;
जो आँसू में धुल-धुल उजला;
जो निष्ठुर चरणों का कुचला,
मैं मरु उर्वर में कसक भरे
अणु-अणु का कम्पन जान चली,
प्रति पग को कर लयवान चली।

नभ मेरा सपना स्वर्ण रजत
जग संगी अपना चिर विस्मित
यह शुल-फूल कर चिर नूतन
पथ, मेरी साधों से निर्मित,
इन आँखों के रस से गीली
रज भी है दिल से गर्वीली
मै सुख से चंचल दुख-बोझिल
क्षण-क्षण का जीवन जान चली!
मिटने को कर निर्माण चली!

महादेवी वर्मा की कुछ प्रसिद्द प्रतिनिधि कवितायें

निम्नलिखित कवितायेँ महादेवी वर्मा की प्रसिद्द प्रतिनिधि कवितायेँ हैं.

अलि! मैं कण-कण को जान चली   जब यह दीप थके   पूछता क्यों शेष कितनी रात?  
यह मंदिर का दीप   जो तुम आ जाते एक बार कौन तुम मेरे हृदय में  
मिटने का अधिकारमधुर-मधुर मेरे दीपक जल! जाने किस जीवन की सुधि ले
नीर भरी दुख की बदली   तेरी सुधि बिन   तुम मुझमें प्रिय, फिर परिचय क्या!
बीन भी हूँ मैं तुम्हारी रागिनी भी हूँ जाग तुझको दूर जाना   मैं प्रिय पहचानी नहीं  
जीवन विरह का जलजात   मैं बनी मधुमास आली! मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
बताता जा रे अभिमानी!   मेरा सजल मुख देख लेते! मैं नीर भरी दुख की बदली!
अधिकार   प्रिय चिरन्तन है   अश्रु यह पानी नहीं है  
स्वप्न से किसने जगाया?   धूप सा तन दीप सी मैं   अब यह चिड़िया कहाँ रहेगी  
मैं अनंत पथ में लिखती जो   जो मुखरित कर जाती थीं क्यों इन तारों को उलझाते?
वे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की   अलि अब सपने की बात   सजनि कौन तम में परिचित सा  
क्या जलने की रीत   किसी का दीप निष्ठुर हूँ तम में बनकर दीप  
जीवन दीप   दीपक अब रजनी जाती रे सजनि दीपक बार ले  
फूल   क्या पूजन क्या अर्चन रे!   दीप मेरे जल अकम्पित  
तितली से   बया हमारी चिड़िया रानी आओ प्यारे तारो आओ  
ठाकुर जी भोले हैं   कोयल  

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