Aradhana Kavita (आराधना कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

Aradhana Kavita, आराधना सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित कविता है।

नोट: यह ‘आराधना’ कविता ‘सुभद्रा कुमारी चौहान’ द्वारा लिखी गयी है. इसी ‘आराधना’ नाम से एक और कविता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ ने लिखा है. इसलिए कंफ्यूज ना हों।

जब मैं आँगन में पहुँची,
पूजा का थाल सजाए।
शिवजी की तरह दिखे वे,
बैठे थे ध्यान लगाए॥

Aradhana Kavita

जिन चरणों के पूजन को
यह हृदय विकल हो जाता।
मैं समझ न पाई, वह भी
है किसका ध्यान लगाता?

मैं सन्मुख ही जा बैठी,
कुछ चिंतित सी घबराई।
यह किसके आराधक हैं,
मन में व्याकुलता छाई॥

मैं इन्हें पूजती निशि-दिन,
ये किसका ध्यान लगाते?
हे विधि! कैसी छलना है,
हैं कैसे दृश्य दिखाते?

Aradhana Kavita

टूटी समाधि इतने ही में,
नेत्र उन्होंने खोले।
लख मुझे सामने हँस कर
मीठे स्वर में वे बोले॥

फल गई साधना मेरी,
तुम आईं आज यहाँ पर।
उनकी मंजुल-छाया में
भ्रम रहता भला कहाँ पर॥

अपनी भूलों पर मन यह
जाने कितना पछताया।
संकोच सहित चरणों पर,
जो कुछ था वही चढ़ाया॥

इसे भी पढ़ें: सुभद्रा कुमारी चौहान का सम्पूर्ण जीवन परिचय


सुभद्राकुमारी चौहान की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ

झांसी की रानी   आराधना इसका रोना  
उपेक्षा   उल्लास   कलह-कारण  
कोयल   कठिन प्रयत्नों से सामग्री   खिलौनेवाला  
गिरफ़्तार होने वाले हैं   चलते समय   चिंता  
जलियाँवाला बाग में बसंत   जीवन-फूल   अनोखा दान  
झाँसी की रानी की समाधि पर   झिलमिल तारे   ठुकरा दो या प्यार करो  
तुम   तुम मानिनि राधे   तुम मुझे पूछते हो  
नीम   परिचय   पानी और धूप  
पूछो   प्रथम दर्शन   प्रतीक्षा  
प्रभु तुम मेरे मन की जानो   प्रियतम से   फूल के प्रति  
बालिका का परिचय   बिदाई   भैया कृष्ण!  
भ्रम   मधुमय प्याली   मुरझाया फूल  
मातृ-मन्दिर में   मेरा गीत   मेरा जीवन  
मेरा नया बचपन   मेरी टेक   मेरी कविता  
मेरे पथिक   यह कदम्ब का पेड़   मेरे भोले सरल हृदय ने  
यह मुरझाया हुआ फूल है   राखी   राखी की चुनौती  
विजयी मयूर   विदा   वीरों का कैसा हो वसंत  
वेदना   व्याकुल चाह   सभा का खेल  
समर्पण   साध   साक़ी  
स्मृतियाँ   स्वदेश के प्रति   हे काले-काले बादल  

Leave a Comment

error: Content is protected !!