AFSPA Full form: Armed Forces Special Powers Act

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AFSPA Full form

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Armed Forces Special Powers Act, आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट, यानि सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (AFSPA), भारतीय संसद द्वारा 11 सितंबर 1958 में पारित किया गया था। भारत की संसद का एक कार्य है जो भारतीय सशस्त्र बलों को “अशांत क्षेत्रों” में सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति प्रदान करता है।

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) क्या है?

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) को उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। जब 1989 के आस पास जम्मू & कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था। AFSPA full form

किसी क्षेत्र विशेष में AFSPA तभी लागू किया जाता है जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को “अशांत क्षेत्र कानून” अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट (Disturbed Area Act) घोषित कर देती है। AFSPA कानून केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किये गए हों। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं।

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AFSPA को सितंबर 1958 को अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था। पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए इसे लागू किया गया था।

कहाँ कहाँ लागू है सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA)

AFSPA वर्तमान में जम्मू और कश्मीर, असम, नागालैंड, मणिपुर (इम्फाल नगरपालिका क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के 3 जिलों तिरप, चांगलांग और लोंगडिंग के साथ-साथ असम से लगने वाले अरुणाचल प्रदेश के अधिकार क्षेत्र वाले 8 पुलिस स्टेशनों में अभी भी लागू है। सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA); उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। जब 1989 के आस पास जम्मू कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था।

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अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड के ‘अशांत इलाकों’ में तैनात सैन्य बलों को शुरू में इस कानून के तहत विशेष अधिकार प्राप्त थे। कश्मीर घाटी में आतंकवादी घटनाओं में बढोतरी होने के बाद जुलाई 1990 में यह कानून सशस्त्र बल (जम्मू एवं कश्मीर) विशेष शक्तियां अधिनियम, 1990 के रूप में जम्मू कश्मीर में भी लागू किया गया। हालांकि जम्मू कश्मीर के लद्दाख इलाके को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया।

नोट: भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने 1 अप्रैल 2018 को मेघालय से भी अफस्पा हटा लिया।

सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (AFSPA) लागू करने की जरुरत क्यों पड़ी?

सबसे पहले नागा नेशनल काउंसिल नेशन ने 1952 के पहले आम चुनाव का बहिष्कार किया गया था, जो बाद में सरकारी स्कूलों और अधिकारियों के बहिष्कार की ओर बढ़ा। स्थिति से निपटने के लिए, असम सरकार ने 1953 में नागा हिल्स में असम मेंटेनेंस ऑफ पब्लिक ऑर्डर (स्वायत्त जिला) अधिनियम लागू किया और विद्रोहियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई तेज कर दी। स्थिति बिगड़ने पर, असम ने नागा हिल्स में असम राइफल्स की तैनाती की और 1955 में असम अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू किया, जिससे अर्धसैनिक बलों और सशस्त्र राज्य पुलिस को इस क्षेत्र में विद्रोह का मुकाबला करने के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान किया गया।

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परीक्षा में पूछे जाने वाले महत्वपूर्ण फुल फॉर्म

किसी राज्य या क्षेत्र को डिस्टर्ब क्षेत्र कब घोषित किया जाता है?

  • जब किसी क्षेत्र में नस्लीय, भाषीय, धार्मिक, क्षेत्रीय समूहों, जातियों की विभिन्नता के आधार पर समुदायों के बीच मतभेद बढ़ जाता है, उपद्रव होने लगते हैं तो ऐसी स्थिति को सँभालने के लिये  केंद्र या राज्य सरकार उस क्षेत्र को “डिस्टर्ब” घोषित कर सकती है।
  • अधिनियम की धारा (3) के तहत, राज्य सरकार की राय का होना जरूरी है कि क्या एक क्षेत्र “डिस्टर्ब” है या नहीं। एक बार “डिस्टर्ब” क्षेत्र घोषित होने के बाद कम से कम 3 महीने तक वहाँ पर स्पेशल फोर्स की तैनाती रहती है।
  • किसी राज्य में AFSPA कानून लागू करने का फैसला या राज्य में सेना भेजने का फैसला केंद्र सरकार नहीं बल्कि राज्य सरकार को करना पड़ता है। अगर राज्य की सरकार यह घोषणा कर दे कि अब राज्य में शांति है तो यह कानून अपने आप ही वापस हो जाता है और सेना को हटा लिया जाता है।

AFSPA कानून में सशस्त्र बलों को क्या-क्या शक्तियां मिलती हैं?

AFSPA कानून का सबसे बड़ा विरोध इसमें सशस्त्र बलों को दी जाने वाली दमनकारी शक्तियां ही हैं। कुछ शक्तियां इस प्रकार हैं:

  • किसी भी संदिग्ध व्यक्ति को बिना किसी वारंट के गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • सशस्त्र बल बिना किसी वारंट के किसी भी घर की तलाशी ले सकते हैं और इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • यदि कोई व्यक्ति अशांति फैलाता है, बार बार कानून तोड़ता है तो मृत्यु तक बल का प्रयोग कर किया जा सकता है।
  • यदि सशस्त्र बलों को अंदेशा है कि विद्रोही या उपद्रवी किसी घर या अन्य बिल्डिंग में छुपे हुए हैं (जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो) तो उस आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह किया जा सकता है।
  • वाहन को रोक कर उसकी तलाशी ली जा सकती है।
  • सशस्त्र बलों द्वारा गलत कार्यवाही करने की दशा में भी, उनके ऊपर कानूनी कार्यवाही नही की जाती है।

AFSPA के पक्ष में तर्क (Points in Favor of ASFPA)

  • AFSPA द्वारा मिली शक्तियों के आधार पर ही सशस्त्र बल देश में उपद्रवकारी शक्तियों के खिलाफ मजबूती से लड़ पा रहे हैं और देश की एकता और अखंडता की रक्षा कर पा रहे हैं।
  • AFSPA की ताकत से ही देश के अशांत हिस्सों जैसे जम्मू & कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में आतंकी संगठनों और विद्रोही गुटों जैसे उल्फा इत्यादि से निपटने में सुरक्षा बलों का मनोबल बढ़ा है।
  • देश के अशांत क्षेत्रों में कानून का राज कायम हो सका है।

AFSPA के विपक्ष में तर्क (Points against ASFPA)

  • सुरक्षा बलों के पास बहुत ही दमनकारी शक्तियां हैं जिनका सशस्त्र बल दुरूपयोग करते हैं।फर्जी एनकाउंटर, यौन उत्पीड़न आदि के मामले इसका पुख्ता सबूत हैं।
  • यह कानून मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है।
  • इस कानून की तुलना अंग्रेजों के समय के “रौलट एक्ट” से की जा सकती है क्योंकि इसमें भी किसी को केवल शक के आधार पर गिरफ्तार किया जा सकता है।
  • यह कानून नागरिकों के मूल अधिकारों का निलंबन करता है।

AFSPA का विशेषाधिकार

इस कानून के अंतर्गत सशस्त्र बलों को तलाशी लेने, गिरफ्तार करने व बल प्रयोग करने आदि में सामान्य प्रक्रिया के मुकाबले अधिक स्वतंत्रता है तथा नागरिक संस्थाओं के प्रति जवाबदेही भी कम है।

AFSPA का विरोध

इस अधिनियम को कथित रूप से अपने प्लागू किये गए क्षेत्रों में मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए प्रखर आलोचना झेलनी पड़ती है। कांग्रेस के पी. चिदंबरम और सैफुद्दीन सोज़ जैसे राष्ट्रीय राजनेताओं ने AFSPA को रद्द करने की वकालत की है। उनका कहना है कि ये स्पष्ट नही करती है कि किस आधार पर किसी क्षेत्र को अशाँत घोषित किया जाएगा। जबकि कांग्रेस की कुछ नेता जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह इसको खारिज किये जाने के खिलाफ हैं।

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AFSPA कानून के आलोचकों का तर्क है कि जहाँ बात वैलेट से बन सकती है वहां पर बुलेट चलाने की कोई जरुरत नही है। यदि यह कानून लागू होने के 60 वर्ष बाद भी अपने उद्देश्यों में सफल नही हो पाया और इसके द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों का पुख्ता तौर पर हनन हुआ है तो निश्चित रूप से इस कानून के प्रावधानों की समीक्षा की जाने की जरुरत है।

इस कानून का विरोध करने वालों में मणिपुर की कार्यकर्ता इरोम शर्मिला का नाम प्रमुख है, जो इस कानून के खिलाफ 16 वर्षों से ज्यादा उपवास किया। फिलहाल इरोम शर्मीला अपने पति के साथ बैंगलोर में रहती हैं।

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