Environment Conservation Hindi / पर्यावरण संरक्षण / What is Environment Conservation in Hindi / Importance of Environment Conservation
जैसा कि हम सब जानते हैं कि प्राकृतिक संसाधन के अंतर्गत आने वाले संसाधन वन, जल, खनिज एवं ऊर्जा किसी भी राष्ट्र के विकास में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। इन संपदाओं के अधिशोषण ने प्राकृतिक संसाधनों को क्षीण कर दिया है तथा कई समस्याओं को जन्म दिया है, जिससे इनके संरक्षण एवं संवर्द्धन की आवश्यकता बढ़ गई है।
पर्यावरण क्या है? What is environment in Hindi? (Environment meaning in Hindi)
पर्यावरण शब्द दो शब्दों के संयोग से बना है: परि+आवरण। ‘परि’ का आशय चारो ओर तथा ‘आवरण’ का आशय परिवेश है।
दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण वनस्पतियों, प्राणियों, और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर का समुच्चय है जिसे पर्यावरण कहतें हैं. पर्यावरण में वायु, जल, भूमि, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं।
पर्यावरण संरक्षण क्या है? What is Environment Conservation? (Environment Conservation in Hindi)
विज्ञान के क्षेत्र में असीमित प्रगति तथा नये आविष्कारों की स्पर्धा के कारण आज का मानव प्रकृति पर पूर्णतया विजय प्राप्त करना चाहता है। इस कारण प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया है। वैज्ञानिक उपलब्धियों से मानव प्राकृतिक संतुलन को उपेक्षा की दृष्टि से देख रहा है। दूसरी ओर धरती पर जनसंख्या की निरंतर वृद्धि , औद्योगीकरण एवं शहरीकरण की तीव्र गति से जहाँ प्रकृति के हरे भरे क्षेत्रों को समाप्त किया जा रहा है
पर्यावरण संरक्षण का अर्थ
पर्यावरण संरक्षण अर्थ है पर्यावरण को किसी भी तरह के दुष्प्रभाव से बचाना. पर्यावरण के किसी भी एक अंग की क्षति पर्यावरण संतुलन पर अपना प्रभाव डालती है। प्रकृति में रहने वाले छोटे-छोटे जीव जन्तु भी सुरम्य पर्यावरण का सन्तुलन बनाने रखने में अपना योगदान देते हैं। अत: मानव समाज के लिए आवश्यक हो जाता है कि वह पर्यावरण संतुलन के प्रति अपनी जागरूकता रखे और उसको बचाने का भरसक प्रयास करे. Environment Conservation Hindi
पर्यावरण में संतुलन लाने के लिए, उसको संरक्षित करने के लिए हमें अपने घर, समाज व आसपास के वातावरण समन्वयता और सरसता लाना आवश्यक है. हमें ऐसे कार्यकलाप रोकने होगें, जिससे पर्यावरण ह्रास स्पष्ट दिखाई पड़ता हैं- जैसे वनों की कटाई, वायु प्रदूषण, जल स्रोतों में गिरता औद्योगिक और सामाजिक कचरा, कुछ निजी शौकों कके लिए वन्य जीवों का शिकार, पर्वतों पर होते विस्फोट, युद्ध क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाले रसायनिक प्रकार के अनेक घातक अस्त्र आदि।
पर्यावरण संरक्षण का महत्त्व (Importance of environment conservation)
इस धरती पर रहने वाले समस्त प्राणियों के जीवन तथा समस्त प्राकृतिक परिवेश से पर्यावरण संरक्षण का घनिष्ठ सम्बन्ध है। हम सबको पता है कि प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और इसी कारण निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है।
इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया गया था। इसके पश्चात सन 2002 में दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन का आयोजन हुआ और विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाए गये। आज सभी को यह जानने की आवश्यकता है कि पर्यावरण के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है.
पर्यावरण संरक्षण के प्रकार
पर्यावरण संरक्षण के निम्लिखित मुख्य प्रकार हैं:
1. जल संरक्षण (Water Conservation)
- भूमिगत जल का विवेकपूर्ण उपयोग कर जल संरक्षण किया जा सकता है।
- वर्षा जल को एकत्रित करके भी भूमिगत जल का संरक्षण किया जा सकता है।
- वनस्पति विनाश पर नियंत्रण कर जल संरक्षण को उपयोगी बनाया जा सकता है।
- प्राकृतिक वनस्पति जलीय चक्र को संपादित करने में सहायक होती है।
- पुनर्चक्रण द्वारा घरेलू जल की बर्बादी को कम किया जा सकता है।
- शुष्क एवं अर्द्धशुष्क प्रदेशों में जल की आपूर्ति का महत्वपूर्ण स्रोत भूमिगत जल होता है, जिसका संरक्षण आवश्यक है।
- प्राकृतिक वनस्पति जलीय चक्र को संपादित करने में सहायक होती है।
- अपशिष्ट जल का शोधन कर उसे पुनः उपयोगी बनाकर जल की कमी को पूरा किया जा सकता है।
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2. मृदा संरक्षण (Soil Conservation)
- मृदा पृथ्वी की ऊपरी परत को कहते हैं, जिसका निर्माण जलवायु ,जीव तथा भौतिक कारकों की पारस्परिक क्रियाओं के परिणाम स्वरुप होता है।
- दीर्घकालीन क्रियाओं के फलस्वरूप मृदा की परतें बनती है।
- यांत्रिक विधियों तथा शस्य कृषि अपनाकर मृदा का संरक्षण किया जा सकता है।
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3. वन संरक्षण (Forest Conservation)
- वनों की कटाई नियोजित एवं विवेकपूर्ण ढंग से तथा वृक्षों का पुनःरोपण कर वन संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- वन्य संसाधनों का दोहन धारणीय तथा पोषणीय सीमा तक कर वन संरक्षण का विकास किया जा सकता है।
- पर्यावरण संबंधी विश्वव्यापी कानून द्वारा भी वनों के संरक्षण पर ध्यान दिया जा सकता है।
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4. वन्यजीव संरक्षण (Wild Life Conservation)
- वन्यजीवों तथा पक्षियों के महत्व को देखते हुए सर्वप्रथम 1887 ई. में वन्य पक्षियों के सुरक्षा कानून को पास किया गया।
- इसके बाद 1883 ई. में स्थापित ‘बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी‘ के प्रयास से ‘इंडियन बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ’ की स्थापना की गई।
- 1935 ई. में ‘अखिल भारतीय वन्य जीव सुरक्षा सभा’ को स्थापित कर वन्य जीवों की सुरक्षा की विशेष नीति अपनाई गई ।
- सर्वप्रथम 1952 ई. में ‘भारतीय वन्य जीव परिषद‘ की स्थापना में जीवों के अध्ययन के आधार पर 13 वन्य जीवों को दुर्लभ घोषित किया गया ।
- 1972 ई. में पारित ‘वन्य जीव रक्षा अधिनियम‘ द्वारा वन्य जीवों के शिकार एवं व्यापार पर भारत सरकार द्वारा कठोर प्रतिबंध लगाया गया है।
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5. जैव-विविधता संरक्षण (Diversity Conservation)
- जैव-विविधता से आशय किसी भी क्षेत्र में, देश में, महाद्वीपों में अथवा विश्व स्तर पर पाए जाने वाले जीव धारियों (जीव और पौधे ) की जैविकीय रचना में विविधता से है।
- जैव-विविधता की दृष्टि से भारत विश्व के 10 सबसे बड़े समृद्ध राष्ट्रों में से एक है।
- जैव-विविधता अधिनियम, 2002 की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य जैव-विविधता बनाए रखने हेतु सुरक्षा और समन्वय को बढ़ावा देना है ।
- जैव-विविधता में तीव्रता से ह्रास के कारण विश्व स्तर पर सर्वप्रथम 1992 ई. में रियो-डी- जेनेरियो (ब्राजील) में सम्पन्न ‘पृथ्वी सम्मेलन’ में अगली पीढ़ियों के सुरक्षित भविष्य के लिए जैव-विविधता की सुरक्षा, संरक्षण एवं विकास पर बल दिया गया।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव
पर्यावरण प्रदूषण के कुछ दूरगामी दुष्प्रभाव होने वाले हैं जो अत्यंत घातक हैं, जैसे आणविक विस्फोटों से रेडियोधर्मिता का मानव और अन्य जीव जंतुओं पर आनुवांशिक प्रभाव, वायुमण्डल का तेजी से बढ़ता हुआ तापमान, ओजोन परत की हानि, भूक्षरण आदि ऐसे घातक दुष्प्रभाव हैं।
प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव के रूप में जल, वायु तथा परिवेश का दूषित होना एवं वनस्पतियों का विनष्ट होना, मानव का अनेक नये रोगों से आक्रान्त होना आदि देखे जा रहे हैं। बड़े कारखानों से विषैला अपशिष्ट बाहर निकलने से तथा प्लास्टिक आदि के कचरे से प्रदूषण की मात्रा उत्तरोत्तर बढ़ रही है।
पर्यावरण संरक्षण की विधियां
जल पर्यावरण संरक्षण
अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा। कारखानों का गंदा पानी, घरेलू गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी को समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा। कारखानों के पानी में हानिकारक रासायनिक तत्व घुले रहते हैं जो नदियों के जल को विषाक्त कर देते हैं, परिणामस्वरूप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है। दूसरी ओर हम देखते हैं कि उसी प्रदूषित पानी को किसान सिंचाई के काम में लेते हैं जिसमें उपजाऊ भूमि भी विषैली हो जाती है। उसमें उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित और विषैली हो जाती हैं जिनके सेवन से अवशिष्ट जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहुंच कर खून को विषैला बना देते हैं। कहने का तात्पर्य यही है कि यदि हम अपने कल को स्वस्थ देखना चाहते हैं तो आवश्यक है कि बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा का समुचित ज्ञान समय-समय पर देते रहें। अच्छे व मंहगें ब्रांड के कपड़े पहनाने से कहीं महत्वपूर्ण है उनका स्वास्थ्य, जो हमारा भविष्य व उनकी पूंजी है।
वायु पर्यावरण संरक्षण
आज वायु प्रदूषण ने भी हमारे पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ ही वायु प्रदूषण भी मानव के सम्मुख एक चुनौती है। माना कि आज मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है परंतु वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुआं, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इन्वर्टर, जेनरेटर आदि से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते हैं। वस्तुतः वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है। सही मायनों में पर्यावरण पर हमारा भविष्य आधारित है, इसके लिए हमें वायु प्रदूषण से पर्यावरण को बचाना बहुत आवश्यक है.
ध्वनि पर्यावरण संरक्षण
आज पर्यावरण के लिए ध्वनि प्रदूषण भी एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में उभरा है. अब हाल यह है कि महानगरों में ही नहीं बल्कि गाँवों तक में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे के जन्म की खुशी, जन्मदिन पार्टी, शादी-पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जाने लगी है। जहां गाँवों को विकसित करके नगरों से जोड़ा गया है। वहीं मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल-पों महानगरों के शोर को भी मुँह चिढ़ाती नजर आती है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने भी ध्वनि प्रदूषण को बढ़ाया है। ध्वनि प्रदूषण से मानव की श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है।
जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण ये तीनों ही हमारे व हमारे फूल जैसे बच्चों के स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा का बढ़ता जाना हिमखंड को पिघला रहा है। सुनामी, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखते हुए अपने बेहतर कल के लिए ‘5 जून’ को समस्त विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।
उपर्युक्त सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास किया जाए तो बचा जा सकता है। और साथ ही साथ अपना पर्यावरण भी बचाया जा सकता है। इसके लिए सर्वप्रथम हमें जनसँख्या को नियंत्रित करना होगा तथा जंगलों व पहाड़ों की सुरक्षा पर ध्यान देना होगा। देखने में आता है कि पहाड़ों पर रहने वाले लोग कई बार घरेलू ईंधन के लिए जंगलों से लकड़ी काटकर इस्तेमाल करते हैं जिससे जंगलों का पूरा पारिस्थिक तंत्र खराब हो रहा है। कहने का तात्पर्य है जो छोटे-छोटे व बहुत कम आबादी वाले गांव हैं, जिनको पहाड़ों पर सड़क, बिजली-पानी जैसे सुविधाएं मुहैया कराने से बेहतर है कि उन्हें प्लेन में विस्थापित किया जाए इससे पहाड़ व जंगल कटान कम होगा, साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित रहेगा।