Viram Chinh Punctuation Hindi (हिंदी के विराम चिन्ह)

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Hindi ke viram chinh

Viram Chinh Punctuation Hindi

Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल

हिंदी के विराम चिन्ह (Punctuation in Hindi)

विराम चिन्ह, Viram Chinh, या Punctuation, “शब्दों और वाक्यों का परस्पर संबंध तथा किसी विषय को भिन्न-भिन्न भागों में बांटने और पढ़ते समय उपयुक्त विराम पाने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिन्ह’ कहते हैं।”

लेखन मनुष्य के जीवन की एक विशेष मानसिक अवस्था है। लेखक लिखते-लिखते थोड़ी देर के लिए रुकता है,  ठहरता है और पूरा विराम (पूर्ण विराम) लेता है। ऐसा इसलिए होता है की हमारी मानसिक दशा और गति  सदैव एक जैसी नहीं रहती। पाठ के भाव-बोध को सरल,  सुबोध बनाने के लिए विराम चिन्हों का प्रयोग होता है। शब्दों और वाक्यों का परस्पर संबंध तथा किसी विषय को भिन्न-भिन्न भागों में बांटने और पढ़ते समय उपयुक्त विराम पाने के लिए जिन चिन्हों का प्रयोग किया जाता है, उन्हें ‘विराम चिन्ह’ कहते हैं। किसी वाक्य अथवा वाक्यांश का उच्चारण करने में अर्थ और भावों की भिन्नताओं के अनुसार जिह्वा को कुछ ठहराव के साथ-साथ कहीं-कहीं विश्राम करना पड़ता है। विराम का शाब्दिक अर्थ होता है, ठहराव (विश्राम) को सूचित करने के लिए भाति भाति के जो चिन्ह प्रयोग किए जाते हैं उन्हें विराम चिन्ह कहा जाता है Viram Chinh Punctuation Hindi

विराम चिन्ह; वाक्य में पद, वाक्यांश और खंड वाक्य के पारस्परिक संबंध सूचित करने के अतिरिक्त उनके अर्थों को स्पष्ट करते हैं। कभी-कभी विराम चिन्ह के अभाव में वाक्यों के अर्थ ही समझ में नहीं आते और कभी-कभी अर्थ का अनर्थ भी हो जाता है इस कारण वाक्यों में विराम चिन्हों को उचित स्थान पर प्रयुक्त करने का अभ्यास करना पड़ता है।

अधिकांश विराम चिन्ह जो आज हिंदी में प्रयुक्त होते हैं अंग्रेजी से लिए गए हैं। हिंदी का निजी विराम चिन्ह केवल पूर्ण विराम है (।)  जो अपनी जननी भाषा के लिए प्रयोग किया जाता है। आजकल विराम चिन्ह इतने अपरिहार्य हो गए हैं कि लेखों में जब तक इनका प्रयोग उचित रूप में नहीं किया जाता तब तक रचना का सौंदर्य, महत्व और अभिप्राय भली-भांति समझ में नहीं आता है। वक्ता अपनी बात को स्पष, प्रभावी और संप्रेषणीय बनाने के लिए कहीं अधिक रुकता है तो कहीं कम। यही भाषा का आरोह अवरोह है। इनमें  कहीं प्रश्न पूछने का अंदाज होता है तो कहीं आश्चर्य का भाव।

मौखिक भाषा में ये विराम, अंदाज और उतार-चढ़ाव भाषा के अर्थ को ही बदल देते हैं।लिखित भाषा में इनकी पूर्ति कुछ चिन्हों द्वारा की जाती है  प्रत्येक विराम चिन्ह लेखक के विशेष मनोदशा का एक-एक पड़ाव उसके ठहराव का संकेत है। Viram Chinh Punctuation Hindi

सही वाक्य की रचना करने के लिए विराम चिन्ह को जानना बहुत जरूरी है।

विराम चिन्हों के प्रकार (Types of Punctuation in Hindi)

विराम चिन्ह निम्न प्रकार के होते हैं: 

क्रम संख्या विराम चिन्ह का नाम संकेत चिन्ह
1. पूर्ण विराम (Full stop) ( । )
2. अर्द्ध-विराम (Semi-Colon) ( ; )
3. अल्प-विराम(Comma) ( , )
4. प्रश्नवाचक चिन्ह(Sign of Interrogation) ( ? )
5. योजक चिन्ह (Hyphen) ( – )
6. उद्धरण चिन्ह(Inverted Commas) (“_ “)
7. रेखिका या निर्देशक चिन्ह(Dash) ( _ )
8. विवरण चिन्ह(Colon+Dash) ( :- )
9. त्रुटिपूरक चिन्ह(Sign of Loftword) ( ^ )
10. संक्षेप सूचक चिन्ह(Abbreviation) ( . )
11. लोक-निर्देश ( …… )
12. समानता सूचक(Equal) ( = )
13. उप-विराम(Colon) ( : )

1- पूर्ण विराम (।) – (Purn Viram)

पूर्ण विराम (Fool stop in hindi) का अर्थ है पूरी तरह से रूकना या ठहरना। सामान्यतः यह किसी कथन के पूर्ण होने पर अप्रत्यक्ष प्रश्नों के अंत में तथा कविता में छंद के चरण के अंत में आता है।

जैसे –

(a)- विस्मयादिबोधक तथा प्रश्नवाचक वाक्यों को छोड़कर प्रत्येक वाक्य के समाप्त होने पर

जैसे- राम अच्छा लड़का है। उसे जाने दो।

(b)- अप्रत्यक्ष प्रश्नों के अंत में 

जैसे- तुम्हें क्या बताऊं कि मैं क्या चाहता हूँ।

(c)- छंद के अंत में

जैसे-

रघुकुल रीति सदा चलि आई।

प्राण जाए पर वचन न जाई।।

(d)- कभी कभी किसी व्यक्ति या वस्तु का सजीव वर्णन करते समय वाक्यांशों के अंत में पूर्ण विराम का प्रयोग होता है

जैसे- प्रशस्त ललाट।

पानीदार बड़ी बड़ी आँखें।

सिर के बाल न अधिक बड़े, ना अधिक छोटे।

नोट:  पूर्ण विराम का प्रयोग कहाँ नहीं करना चाहिए-

जब एक वाक्य का संबंध दूसरे वाक्य से हो

जैसे – मैं मनुष्य में मानवता देखना चाहता हूं , उसे देवता बनाने की मेरी इच्छा नहीं है।

2. अर्द्ध विराम ( ; ) – (Ardh Viram)

जहां पूर्ण विराम से कुछ कम और अल्पविराम से कुछ अधिक रुकने की आवश्यकता हो, वहां अल्पविराम का प्रयोग होता है;

 जैसे- डटकर परिश्रम करो; सफलता अवश्य मिलेगी।

सदा सत्य बोलो; जिससे लोग तुम्हारा विश्वास करें।

अर्धविराम का प्रयोग निम्न रूपों में होता है-

(a)- जब वाक्य में एक समान अधिकरण का प्रयोग होता है

जैसे- महात्मा गांधी ने देश को स्वतंत्र कराने के लिए असहयोग आंदोलन चलाया; सत्य और अहिंसा के अस्त्रों का प्रयोग किया; देश के समक्ष पूर्ण स्वराज्य का लक्ष्य रखा।

(b)- मिश्रित तथा संयुक्त वाक्यों में विरोध या वैपरीत्य का भाव प्रकट करने के लिए

जैसे- वह कष्ट सहता रहा; लोग आनंद लेते रहे।

जो लोग उसका आदर करते हैं; वह उन्हीं को मुर्ख समझता है।

(c)-करणवाचक क्रिया विशेषण में- 

जब करण वाचक क्रिया विशेषण उपवाक्य का मुख्य उपवाक्य से निकट सम्बन्ध नहीं दिखाई देता, तो वहां अर्धविराम का प्रयोग होता है;

जैसे-

वायु के दबाव से साबुन का एक बुलबुला भी नहीं दबता; क्योंकि हवा का बाहरी दबाव बुलबुले की भीतरी दबाव से कट जाता है।

3. अल्प-विराम( , ) – (Alp Viram)

हिंदी व्याकरण में अल्प-विराम सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला विराम चिन्ह है. जहां हम क्षण भर के लिए रुकते हैं वहां हम अल्पविराम का प्रयोग करते हैं, अल्पविराम का अर्थ ही होता है थोड़ी देर के लिए रुकना या ठहरना. Viram Chinh Punctuation Hindi

अल्पविराम का प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में होता है-

(a)- वाक्य में जब दो से अधिक समान पदों या पद्यांशों अथवा वाक्यों में संयोजक अव्यय की  गुंजाइश हो, तब वहां अल्पविराम का प्रयोग होता है

जैसे-

पदों में-  सचिन तेंदुलकर, महेश भूपति और वीरेंद्र सहवाग तथा महेंद्र सिंह धोनी, भारत के लोकप्रिय खिलाड़ियों में से हैं।

इनमें धनी-निर्धन, शहरी-देहाती, शिक्षित और अशिक्षित सभी को ‘मताधिकार’ का हक है।

वाक्यों में – राजेश रोज मंदिर जाता है, घंटा बजाता है,भगवान के दर्शन करता है और घर चला आता है।

(b)- उपवाक्यों को अलग करने के लिए 

जैसे-

जो  परिश्रमी होते हैं, वही सफल होते हैं।

भविष्य में जो भी होगा, देखा जाएगा।

(c)- तब, तो यह, वह आदि के स्थान पर

जैसे-

जब मेरा भाई आया, तब मैं खाना खा रहा था।

(d)- सम्बोधन को शेष वाक्य से अलग करने के लिए;

जैसे-

मोहन, अब तुम जा सकते हो।

मेरे भाइयों और बहनों, राष्ट्रभक्ति से बढ़कर कोई भक्ति नहीं है।

4. उपविराम( : ) – (Up Viram)

इसका प्रयोग बहुधा शीर्षकों में होता है;

जैसे-

कामायनी: एक अध्ययन

गदर: एक प्रेम कथा

5. प्रश्नवाचक चिन्ह( ? ) –

(a)- जब वाक्य में क्या, क्यों आदि शब्दों का प्रयोग हो तो वहां प्रश्नवाचक चिन्ह का प्रयोग करते हैं.

जैसे-  तुम रोज सुबह कहाँ जाते हो ?

(b)- अनिश्चय की स्थिति उत्प्नन होने पर;

जैसे-

आप शायद बलिया के निवासी हैं?

(c)- व्यंग्योक्ति होने पर; 

जैसे-

आतंकवाद ही सर्वश्रेष्ठ जन सेवा है; है न?

6. योजक चिन्ह् ( – )- (Yojak Chinh)

विराम के बाद योजक चिन्ह सर्वाधिक प्रयुक्त होने वाला विराम चिह्न है।

योजक चिन्ह् का प्रयोग निम्नलिखित है –

(a)- योजक चिन्ह दो विपरीत शब्दों को  जोड़ता है

जैसे- आगा-पीछा, ऊंच-नीच, लाभ-हानि, जीवन-मरण, आकाश-पाताल आदि।

(b)-यह दो शब्दों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता है, लेकिन दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहता है

जैसे – धर्म-अधर्म, माता-पिता, पाप-पुण्य आदि

(c)- योजक चिन्ह का प्रयोग द्वंद समास में सर्वाधिक होता है इसलिए योजक चिन्ह को  सामासिक चिन्ह भी कहा जाता है द्वंद समास में कभी-कभी ऐसे पदों का प्रयोग होता है जिनके अर्थ प्रायः समान होते हैं यह पद बोलचाल में प्रयुक्त होते हैं।ये ‘एकार्थक बोधक सहचर शब्द’ कहलाते हैं

जैसे- साग-पात, हंसी-खुशी, कपड़ा- लत्ता,

भूत- प्रेत, नौकर-चाकर, जीव-जंतु ,दीन-दुखी आदि।

(d)- जब दो विशेषण पदों का संज्ञा के अर्थ में प्रयोग हो वहां योजक चिन्ह लगता है;

जैसे- लूला- लंगड़ा, भूखा-प्यासा, अंधा-बहरा आदि।

(e)-  दो शब्दों में जब एक सार्थक और दूसरा निरर्थक हो,वहां भी योजक चिन्ह लगाया जाता है;

जैसे- पानी-वानी, चाय-वाय, उल्टा-पुल्टा, परमात्मा-वरमात्मा आदि।

7.उद्धरण चिह्न( ‘ ‘ , ” ” )- (Uddhran Chinh)

उद्धरण चिन्ह के दो रूप है –  इकहरा( ‘ ‘ ) और दोहरा( ” ” )|

(a)-  जहां किसी पुस्तक से कोई वाक्य या अवतरण ज्यों का त्यों उद्धत किया जाए,वहां दोहरे उद्धरण चिन्ह का प्रयोग होता है और जहां कोई विशेष शब्द, पद, वाक्य-खंड इत्यादि उद्धत किए जाएं,वहां इकहरे उद्धरण लगते हैं. Viram Chinh Punctuation Hindi

जैसे –

“स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है|”

‘निराला’ छायावाद के क्रांतिदर्शि कवि थे|’

(b)-  संधि, कहावत तथा महत्वपूर्ण कथन आदि को उद्धत करने में दोहरे उद्धरण चिन्ह का प्रयोग होता है;

जैसे – 

गीता का वचन है, “कर्म करो किंतु फल की इच्छा न करो |”

प्रेमचंद का कथन है, “जब तक पैरों तले गर्दन दबी है तब तक उसे सहलाना ही श्रेयस्कर है|”

8. रेखिका या निर्देशक-चिन्ह(-) –

इस चिह्न का प्रयोग संकेत के लिए होता है;

जैसे- 

शब्द के दो भेद होते हैं – सार्थक और निरर्थक |

9. विवरण चिह्न( :- )- (Viwran Chinh)

जहां किसी चीज का विवरण दिया जाए वहां इस चिह्न का प्रयोग होता है;

जैसे- गद्यखंड का भावार्थ निम्नलिखित है:-

10. त्रुटिपूरक चिन्ह( ^ )- (Trutipurak Chinh)

इसे हंसपद भी कहा जाता है| जब लिखने में कुछ छूट जाता है तो इसका प्रयोग करते हैं;

जैसे-

गोदान

प्रेमचंद का    ^   ग्राम्य जीवन की संजीव झांकी प्रस्तुत करता है|

11. संक्षेप सूचक चिह्न( . )- (Sanchhep Suchak Chinh)

शब्दों का संक्षिप्त रूप दिखने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है;

जैसे-

बी.बी.सी.( ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन)

12. लोक-निर्देश(….)- (Lok Nirdesh)

जब पूर्व बात की पुनरुक्ति करनी होती है तो उस बात को आरंभ के दो-तीन शब्द लिखकर बीच में (….)’लोप चिह्न’ दे दिए जाते हैं|

13. समानता सूचक(=)- (Samanta Suchak)

यह विराम चिन्ह गणित में अधिक प्रयुक्त होता है किंतु संक्षिप्तता के आग्रह से कभी-कभी सामान्य भाषा में भी इसका प्रयोग करते हैं;

जैस- रात्रि=निशा, दिवस=दिन

14. कोष्ठक चिह्न( [ ],{ },( ) )- (Koshthak Chinh)

कोष्ठक चिह्न प्रायः वाक्य के मध्य में आता है| कोष्टक में ऐसी जानकारियां रखी जाती है जो मुख्य वाक्य का अंग होते हुए भी उनसे पृथक की जा सकती है;

जैसे – आचार्य शुक्ल (आचार्य रामचंद्र शुक्ल) को सभी जानते हैं|

15. विस्मयसूचक या संबोधक ( ! )- (Exclamatory Sign in Hindi)

(a)- यह चिह्न विस्मय (आश्चर्य आदि )का बोध कराने वाले दो पद बंधों अथवा वाक्यों के अंत में आता है;

जैसे-

अहा! कितना सुहावना मौसम है|

अहा! कितना प्यारा फूल है|

(b)- संबोधन के लिए-

राम !अब तुम पढ़ो|

(c)- जहां अपने से छोटों के प्रति शुभकामनाएं प्रकट की जाए

पुत्र चिरंजीवी हो! भगवान तुम्हारा भला करे|Viram Chinh Punctuation Hindi 

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