Samas Samas Vigrah/ हिंदी के समास और समास विग्रह
Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल
समास क्या है? (Samas in Hindi)
अर्थ एवं परिभाषा (Meaning and Definition of Samas in Hindi)
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षिप्ति अर्थात छोटा रूप।
दूसरे शब्दों में कहें तो समास संक्षेप करने की प्रक्रिया है
दो या दो से अधिक शब्दों का परस्पर सम्बन्ध बताने वाले शब्दों या प्रत्ययों के नष्ट होने पर उन शब्दों के मेल से जो एक स्वतंत्र शब्द बनता है, उस शब्द को सामासिक शब्द कहते हैं और उन दो या दो से अधिक शब्दों का संयोग समास कहलाता है
जैसे: ज्ञानसागर मतलब ज्ञान का सागर
इस उदाहरण में दो शब्दों ज्ञान और सागर का सम्बन्ध बताने वाले संबंधकारक के “का” प्रत्यय के नष्ट होने पर एक नया शब्द बना है ज्ञानसागर
दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जहाँ पर कम-से-कम शब्दों में अधिक से अधिक अर्थ को प्रकट किया जाए, वहाँ समास होता है।
संस्कृत, जर्मन तथा बहुत सी भारतीय भाषाओँ में समास का बहुत प्रयोग किया जाता है। समास रचना में दो पद होते हैं, पहले पद को ‘पूर्वपद’ कहा जाता है और दूसरे पद को ‘उत्तरपद’ कहा जाता है। इन दोनों से जो नया शब्द बनता है वो समस्त पद कहलाता है।
जैसे :-
रसोई के लिए घर = रसोईघर
हाथ के लिए कड़ी = हथकड़ी
नील और कमल = नीलकमल
राजा का पुत्र = राजपुत्र
Samas Samas Vigrah
सामासिक शब्द क्या होता है?
समास के नियमों से निर्मित शब्द सामासिक शब्द कहलाता है। इसे समस्तपद भी कहा जाता है। समास होने के बाद विभक्तियों के चिन्ह गायब हो जाते हैं।
जैसे :- राजपुत्र
समास विग्रह (Samas vigrah)
सामासिक शब्दों के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट करने को समास – विग्रह कहते हैं। विग्रह के बाद सामासिक शब्द गायब हो जाते हैं अथार्त जब समस्त पद के सभी पद अलग – अलग किय जाते हैं उसे समास-विग्रह कहते हैं।
जैसे :- माता-पिता = माता और पिता
समास और संधि में अंतर (Difference between Samas and Sandhi)
संधि का शाब्दिक अर्थ होता है मेल। संधि में उच्चारण के नियमों का विशेष महत्व होता है। इसमें दो वर्ण होते हैं इसमें कहीं पर एक तो कहीं पर दोनों वर्णों में परिवर्तन हो जाता है और कहीं पर तीसरा वर्ण भी आ जाता है। संधि किये हुए शब्दों को तोड़ने की क्रिया विच्छेद कहलाती है। संधि में जिन शब्दों का योग होता है उनका मूल अर्थ नहीं बदलता जबकि समास में कभी-कभी पूरा अर्थ ही बदल जाता है
जैसे: पुस्तक+आलय = पुस्तकालय (संधि का उदाहरण)
समास का शाब्दिक अर्थ होता है संक्षेप। समास में वर्णों के स्थान पर पद का महत्व होता है। इसमें दो या दो से अधिक पद मिलकर एक समस्त पद बनाते हैं और इनके बीच से विभक्तियों का लोप हो जाता है। समस्त पदों को तोडने की प्रक्रिया को विग्रह कहा जाता है। समास में बने हुए शब्दों के मूल अर्थ को परिवर्तित किया भी जा सकता है और परिवर्तित नहीं भी किया जा सकता है।
जैसे: विषधर = विष को धारण करने वाला अथार्त भगवान शिव
उपमान और उपमेय
उपमेय: जिस वस्तु की समानता किसी दूसरे वस्तु से दिखलाई जाये वह उपमेय होता है. जैसे: कर कमल सा कोमल है। इस उदाहरण में कर उपमेय है ।
उपमान: उपमेय को जिसके समान बताया जाये उसे उपमान कहते हैं। इस उदाहरण में ‘कमल’ उपमान है।
Samas Samas Vigrah
समास के प्रकार (Types of samas in Hindi)
समास 6 प्रकार के होते हैं:
1) अव्ययीभाव समास (Awyayibhaw Samas)
2) तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)
3) कर्मधारय समास (Karmdharay Samas)
4) द्विगु समास (Dwigu Samas)
5) द्वन्द्व समास (Dwandw Samas)
6) बहुब्रीहि समास (Bahubreehi Samas)
प्रयोग की दृष्टि से समास के भेद
- संयोगमूलक समास
- आश्रयमूलक समास
- वर्णनमूलक समास
1) अव्ययीभाव समास (Awyayibhaw Samas)
जिस समास में प्रथम पद प्रधान हो और वह क्रिया-विशेषण अव्यय से, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं
जैसे:
प्रतिदिन- दिन-दिन
यथाशक्ति- शक्ति के अनुसार
यथाविधि- विधि के अनुसार
यथाक्रम- कर्म के अनुसार
प्रत्येक- एक-एक के प्रति
बारम्बार- बार-बार
आजन्म- जन्मपर्यन्त
भरपेट- पेट-भर
2) तत्पुरुष समास (Tatpurush Samas)
जिस समास में पहला पद गौण तथा दूसरा पद प्रधान रहता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं. वैसे तो तत्पुरुष समास के 8 भेद होते हैं किन्तु विग्रह करने की वजह से कर्ता और सम्बोधन दो भेदों को लुप्त रखा गया है। इसलिए विभक्तियों के अनुसार या कारक चिन्हों के अनुसार तत्पुरुष समास के 6 भेद होते हैं
- द्वितीया तत्पुरुष समास (कर्म तत्पुरुष समास – को)
द्वितीया तत्पुरुष समास या कर्म तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में कर्मकारक छिपा हुआ होता है। कर्मकारक का चिन्ह ‘को’ होता है। ‘को’ को कर्मकारक की विभक्ति भी कहा जाता है।
जैसे:
- सुखप्राप्त-सुख को प्राप्त करने वाला
- माखनचोर- माखन को चुराने वाला
- पतितपावन- पापियों को पवित्र करने वाला
- स्वर्गप्राप्त- स्वर्ग को प्राप्त करने वाला
- चिड़ीमार- चिड़ियों को मारने वाला
- रथचालक- रथ को चलने वाला
- ग्रामगत- ग्राम को गया हुआ
- वनगमन- वन को गमन
- मुंहतोड़- मुंह को तोड़ने वाला
- देशगत- देश को गया हुआ
- जनप्रिय- जन को प्रिय
- मरणासन्न- मरण को आसन्न
- गिरहकट- गिरह को काटने वाला
- कुंभकार- कुंभ को बनाने वाला
- गृहागत- गृह को आगत
- कठफोड़वा- कांठ को फोड़ने वाला
- शत्रुघ्न- शत्रु को मारने वाला
- गिरिधर- गिरी को धारण करने वाला
- मनोहर- मन को हरने वाला
- यशप्राप्त- यश को प्राप्त
तृतीया तत्पुरुष समास (करण तत्पुरुष समास- से)
तृतीया तत्पुरुष समास या करण तत्पुरुष समास क्या होता है :- जहाँ पर पहले पद में करण कारक का बोध होता है। इसमें दो पदों के बीच करण कारक छिपा होता है। करण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के द्वारा’ और ‘से’ होता है।
Samas Samas Vigrah
जैसे:
- नेत्रहीन- नेत्र से हीन
- ईश्वरदत्त-ईश्वर द्वारा दत्त
- तुलसीकृत- तुलसी द्वारा कृत
- रसभरा- रस से भरा
- मुंहमांगा- मुँह से माँगा गया
- स्वरचित – स्व द्वारा रचित
- मनचाहा – मन से चाहा
- शोकग्रस्त – शोक से ग्रस्त
- भुखमरी – भूख से मरी
- धनहीन – धन से हीन
- बाणाहत – बाण से आहत
- ज्वरग्रस्त – ज्वर से ग्रस्त
- मदांध – मद से अँधा
- रसभरा – रस से भरा
- आचारकुशल – आचार से कुशल
- भयाकुल – भय से आकुल
- आँखोंदेखी – आँखों से देखी
- तुलसीकृत – तुलसी द्वारा रचित
- रोगातुर – रोग से आतुर
- पर्णकुटीर – पर्ण से बनी कुटीर
- कर्मवीर – कर्म से वीर
- रक्तरंजित – रक्त से रंजित
- जलाभिषेक – जल से अभिषेक
- रोगग्रस्त – रोग से ग्रस्त
- गुणयुक्त – गुणों से युक्त
- अंधकारयुक्त – अंधकार से युक्त
चतुर्थी तत्पुरुष समास (सम्प्रदान तत्पुरुष समास- के लिए)
चतुर्थी तत्पुरुष समास या सम्प्रदान तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच सम्प्रदान कारक छिपा होता है। सम्प्रदान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘के लिए’ होती है। उसे सम्प्रदान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
- शिवार्पण- शिव के लिए अर्पण
- रसोईघर- रसोई के लिए घर
- यज्ञाहुति- यज्ञ के लिए आहुति
- सभाभवन- सभा के लिए भवन
- स्वागातगान- स्वागत के लिए गान
- शरणागत- शरण के लिए आगत
- विद्यालय – विद्या के लिए आलय
- विश्रामगृह – विश्राम के लिए गृह
- गुरुदक्षिणा – गुरु के लिए दक्षिणा
- प्रयोगशाला – प्रयोग के लिए शाला
- देशभक्ति – देश के लिए भक्ति
- स्नानघर – स्नान के लिए घर
- सत्यागृह – सत्य के लिए आग्रह
- यज्ञशाला – यज्ञ के लिए शाला
- डाकगाड़ी – डाक के लिए गाड़ी
- देवालय – देव के लिए आलय
- गौशाला – गौ के लिए शाला
- युद्धभूमि – युद्ध के लिए भूमि
- हथकड़ी – हाथ के लिए कड़ी
- धर्मशाला – धर्म के लिए शाला
- पुस्तकालय – पुस्तक के लिए आलय
- राहखर्च – राह के लिए खर्च
- परीक्षा भवन – परीक्षा के लिए भवन
पञ्चमी तत्पुरुष समास (अपादान तत्पुरुष समास- से)
पञ्चमी तत्पुरुष समास या अपादान तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में अपादान कारक छिपा होता है। अपादान कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘से अलग’ होता है। उसे अपादान तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
- देशनिर्वासित- देश से निकाला गया
- पदच्युत- पद से हटाया गया
- जन्मांध- जन्म से अंधा
- पथभ्रष्ट- पथ से भ्रष्ट
- धनहीन- धन से हीन
- कामचोर – काम से जी चुराने वाला
- दूरागत – दूर से आगत
- रणविमुख – रण से विमुख
- नेत्रहीन – नेत्र से हीन
- पापमुक्त – पाप से मुक्त
- देशनिकाला – देश से निकाला
- पदच्युत – पद से च्युत
- जन्मरोगी – जन्म से रोगी
- रोगमुक्त – रोग से मुक्त
- जन्मांध – जन्म से अँधा
- कर्महीन – कर्म से हीन
- वनरहित – वन से रहित
- अन्नहीन – अन्न से हीन
- जलहीन – जल से हीन
- गुणहीन – गुण से हीन
- फलहीन – फल से हीन
- भयभीत – भय से डरा हुआ
षष्टी तत्पुरुष समास (सम्बन्ध तत्पुरुष समास- का, की, के)
षष्टी तत्पुरुष समास या सम्बन्ध तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच में सम्बन्ध कारक छिपा होता है। सम्बन्ध कारक के चिन्ह या विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’ होती हैं।
जैसे:
- राजपुत्र- राजा का पुत्र
- राजकन्या- राजा की कन्या
- गंगाजल- गंगा का जल
- चन्द्रोदय- चन्द्रमा का उदय
- अन्नदाता- अन्न का दाता
- देशसुधार- देश का सुधार
- लोकतंत्र – लोक का तंत्र
- दुर्वादल – दुर्व का दल
- देवपूजा – देव की पूजा
- आमवृक्ष – आम का वृक्ष
- राजकुमारी – राज की कुमारी
- जलधारा – जल की धारा
- राजनीति – राजा की नीति
- सुखयोग – सुख का योग
- मूर्तिपूजा – मूर्ति की पूजा
- श्रधाकण – श्रधा के कण
- शिवालय – शिव का आलय
- देशरक्षा – देश की रक्षा
- सीमारेखा – सीमा की रेखा
- जलयान – जल का यान
- कार्यकर्ता – कार्य का करता
- सेनापति – सेना का पति
- कन्यादान – कन्या का दान
- गृहस्वामी – गृह का स्वामी
- पराधीन – पर के अधीन
- आनंदाश्रम – आनन्द का आश्रम
- राजाज्ञा – राजा की आज्ञा
सप्तमी तत्पुरुष समास (अधिकरण तत्पुरुष समास- में, पे, पर)
सप्तमी तत्पुरुष समास या अधिकरण तत्पुरुष समास क्या होता है :- इसमें दो पदों के बीच अधिकरण कारक छिपा होता है। अधिकरण कारक का चिन्ह या विभक्ति ‘में’, ‘पर’ होता है। उसे अधिकरण तत्पुरुष समास कहते हैं।
जैसे:
- पुरुषसिंह- पुरुषों में सिंह
- पुरुषोत्तम- पुरुषों में उत्तम
- कविश्रेष्ठ- कवियों में श्रेष्ठ
- स्वर्गवासी- स्वर्ग में बसने वाला
- आपबीती- अपने पर बीती
- रथारूढ़- रथ पर आरूढ़
- जलमग्न- जल में मग्न
- कर्तव्यपरायणता- कर्तव्य में परायणता
- वनवास – वन में वास
- ईश्वरभक्ति – ईश्वर में भक्ति
- आत्मविश्वास – आत्म में विश्वास
- दीनदयाल – दीनों पर दयाल
- दानवीर – दान देने में वीर
- आचारनिपुण – आचार में निपुण
- जलमग्न – जल में मग्न
- सिरदर्द – सिर में दर्द
- कलाकुशल – कला में कुशल
- कार्यकुशल – कार्य में कुशल
- शरणागत – शरण में आगत
- आनन्दमग्न – आनन्द में मग्न
- आपबीती – आप पर बीती
- नगरवास – नगर में वास
- रणधीर – रण में धीर
- क्षणभंगुर – क्षण में भंगुर
- लोकप्रिय – लोक में प्रिय
- गृहप्रवेश – गृह में प्रवेश
- युधिष्ठिर – युद्ध में स्थिर
- शोकमग्न – शोक में मग्न
- धर्मवीर – धर्म में वीर
इसे भी पढ़ें: संधि और संधि विच्छेद
3) कर्मधारय समास (Karmdharay Samas)
कर्मधारय समास में पहला और दूसरा दोनों पद प्रधान होते हैं. इनके पदों में विशेषण- विशेष्य, विशेषण-विशेषण, या उपमान-उपमेय का सम्बन्ध होता है
कर्मधारय समास के भी 2 भेद होते हैं:
विशेषतावाचक और उपमानवाचक
- विशेषतावाचक कर्मधारय समास
जैसे:
- महाकवि- महान जो कवि
- महादेव- महान जो देव
- नराधम- अधम जो नर
- महौषधि- महान है जो औषधि
- नीलाम्बुज- नीला अम्बुज
- पीताम्बर- पीत अम्बर
- पीतसागर- पीत जो सागर
उपमानवाचक कर्मधारय समास
जैसे:
- चन्द्रमुख- चन्द्रमा के समान मुख
- मृगनयन- मृग के समान नयन
- चरणकमल- कमल के समान चरण
- लौहपुरुष- लोहे के समान पुरुष
- लतादेह- लता के समान देह
- मृगलोचन- मृग के समान लोचन
नोट: कर्मधारय समास को तत्पुरुष का ही एक भेद माना गया है.
Samas Samas Vigrah
4) द्विगु समास (Dwigu Samas)
जिस समास का पहला पद संख्यावाचक और दूसरा पद संज्ञा हो उसे द्विगु समास कहते हैं
जैसे:
- चतुर्दिक- चारो दिशाएँ
- दोपहर- दो पहरों का समाहार
- त्रिफला- तीन फलों का समाहार
- त्रिलोक- तीन लोकों का समाहार
- चतुर्युग- चार युगों का समाहार
- पंचपाल- पाँच पालों का समाहार
- त्रिकोण- तीन कोण
नोट: द्विगु समास को कर्मधारय समास का ही भेद माना जाता है
5) द्वन्द्व समास (Dwandw Samas)
द्वन्द्व समास में दोनों पद प्रधान होते हैं और दोनों पद संज्ञा या उनका समूह होते हैं. इसमें “और”, “वा”, “आदि” का लोप पाया जाता है
जैसे:
- सीताराम- सीता और राम
- पाप-पुण्य- पाप और पुण्य/ पाप या पुण्य
- रात-दिन- रात और दिन/ रात या दिन
- भाई-बहन- भाई और बहन/ भाई या बहन
- माता-पिता- माता और पिता/ माता या पिता
- राजा-रंक- राजा और रंक/ राजा या रंक
- राधा-कृष्ण- राधा और कृष्ण
- पति-पत्नी- पति और पत्नी
6) बहुब्रीहि समास (Bahubreehi Samas)
बहुब्रीहि समास में भी दो पद होते हैं लेकिन इसमें किसी अन्य पद कि प्रधानता रहती है
जैसे: दशानन
इसमें दो पद है दश और आनन. इसमें पहला पद विशेषण और दूसरा पद संज्ञा है. वस्तुतः इसे कर्मधारय समास होना चाहिए था लेकिन बहुब्रीहि में दशानन का अर्थ दस मुख धारण करने वाले रावण से लिया जायेगा
जैसे:
- पीताम्बर- पीत है अम्बर जिसका अर्थात श्रीकृष्ण
- लम्बोदर- लम्बा है उदर जिनका अर्थात गणेश
- चक्रधर- चक्र को धारण करने वाले अर्थात भगवान् विष्णु
- खगेश- खगों का ईश अर्थात गरुण
- जलज- जल में उत्पन्न होता है जो अर्थात कमल
समास शब्द | विग्रह का आशय | |
---|---|---|
1 | यथाविधि | विधि के अनुसार |
2 | राजपुत्र | राजा का पुत्र |
3 | पदच्युत | पद से हटाना |
4 | नीलाम्बर | नीला है अम्बर जो अर्थात आकाश |
5 | सद्पथ | अच्छा है जो पथ |
6 | पदारविंद | चरण हैं कमल के समान |
7 | नवग्रह | नौ ग्रहों का समूह |
8 | पंचरत्न | पाँच रत्नों का समूह |
9 | लम्बोदर | लंबा है उदर जिसका अर्थात गणेश |
10 | दशानन | दस हैं आनन जिसके अर्थात रावण |
11 | चन्द्रशेखर | चन्द्र हैं शिखर पर जिसके अर्थात शिव |
12 | अनुराग-विराग | अनुराग और विराग |
13 | मानापमान | मान और अपमान |
14 | आजीवन | जीवनभर |
15 | चरित्र-चित्रण | चरित्र का चित्रण |
16 | महापुरुष | पुरुष जो महान है |
17 | सप्ताह | सात दिनों का समूह |
18 | त्रिवेणी | त्रि (तीन) वेणियों का समूह |
19 | चतुरानन | चार हैं आनन (मुख) जिसके अर्थात ब्रह्मा |
20 | पुरुषसिंह | पुरुष और सिंह |
21 | रामकृष्ण | राम और कृष्ण |
22 | आयव्यय | आय और व्यय |
23 | यथार्ह | अर्ह (योग्यता) के अनुसार |
24 | षडानन | छ मुख वाले अर्थात् कार्तिकेय |
25 | आजीवन | जीवनभर |
जगबीती कोन सा समास है
Tatpurus samas hai
Paramdham ka konsa samas h??
Tatpurush
Ramnaresh me kon sa samas h