Nadirshah looted Dilli/ भारत को प्राचीन और मध्यकालीन युग मे सोने की चिड़िया कहा जाता था क्योंकि उस समय भारत में अकूत धन-संपत्ति थी। वही वजह रही कि विदेशी मुल्क हमेशा इस पर नज़रें गड़ाये रखते थे। अगर आप इतिहास देखें तो पायेंगे कि भारत को विदेशी और अपनों ने इतना लूटा-खसोटा है कि ऐसा लगता है कि भारत की क़िस्मत में ही भगवान ने लूट-खसोट लिख दिया है कि जो भी चाहे लूटे और चला जाये।
ऐसी ही एक बर्बर लूट की कहानी हम आज आपको बताने जा रहे हैं। यह कहानी है फारस के राजा नादिरशाह की जिसने दिल्ली को बहुत ही बर्बर तरीके से लूटा था। नादिर शाह जिसके नाम दिल्ली का कत्लेआम दर्ज है, उसने भारतीय सूर्य मणि (कोहिनूर) और मयूर सिंहासन (तख्त-ए-ताउस) को भी लूटा और उसे अपने साथ फारस लेकर चला गया।
नादिरशाह के आक्रमण के समय भारत की स्थिति
तैमूर लंग की लूट को कोई 340 साल बीत चुके थे। यद्दपि इस बीच सोने की चिड़िया के पिंजरे के रखवाले अंदरूनी लूट करते रहे लेकिन व्यापारियों, ओहदेदारों और अमीर उजरों और बादशाह के पास काफी धन इकठ्ठा हो चुका था। मुगल शासन अपनी अंतिम साँसे ले रहा था और उधर फारस का धनलोलुप शासक नादिरशाह इस फिराक में था कि समय मिलते ही भारत को लूटे।
भारत में स्थिति ऐसी थी कि राजपूतों ने भी बादशाह का साथ देना छोड़ दिया था। मुसलमान अमीर और अधिकारी षड्यंत्र में नादिरशाह के साथ मिल गए और वह बिना कोई जंग लड़े करनाल के पास पहुँच गया। 13 फरवरी 1739 को करनाल में नादिरशाह की लड़ाई मुगलों के साथ हुयी। उसने 24 फरवरी 1739 को अपने प्रतिनिधियों को दिल्ली पर कब्ज़ा करने भेजा। किलेदार ने किले के दरवाजे बंद कर दिए लेकिन कमजोर बादशाह मोहम्मद शाह ने आत्मसमर्पण किया और लुटेरे के स्वागत के लिए सेना को प्रदेशद्वार पर खड़ा कर दिया।
नादिरशाह ने अपना पड़ाव लालकिले के राजभवन में डाला और बादशाह मुहम्मद शाह असद बुर्ज के निकट भवन में ठहरा। अगले दिन मुसलमानों का त्यौहार ईद-उल-जुहा था. इस दिन नादिरशाह के नाम पर खुतबा पढ़ा गया और सिक्के चलाए गए। Nadirshah looted Dilli
नादिरशाह का दिल्ली को लूटने का आदेश
बकरीद का दिन था। अचानक दोपहर के समय शहर में यह अफवाह फ़ैल गयी कि नादिरशाह को बंदी बना लिया गया है और सादत खां की सेना ने नादिरशाह की सेना के 3000 सैनिकों को मार डाला है। नादिरशाह इस अफवाह पर जलभुन गया। उसने अपने 1000 सैनिकों को भेजा लेकिन तबतक रात हो चुकी थी। अगले दिन नादिरशाह अपने सैनिकों को लेकर चाँदनी चौक के बीच रौशन-उद-दौला मस्जिद (सुनहरी मस्जिद) पर पहुंचा. उसने छत पर चढ़कर खुदा के घर से दिल्ली में कत्ले-आम का हुक्म जारी किया और ये दिल्ली की सबसे वीभत्स लूट थी। औरतों को गुलाम बना लिया गया। सभी सर्राफा बाजार, जौहरियों की दुकानों और व्यापारियों को बुरी तरह लूटा गया। इमारतों को आग लगा दी गयी। यह जनसंहार 6 घंटे तक चला। मरनेवालो की संख्या 40000 तक बताई जाती है। अनेक स्त्रियों ने लाज बचाने के लिए आत्महत्या कर ली। सराय रूहेलाखां और मुगलपुरा के लोगों को कठोर दंड मिला क्योंकि उन्होंने नादिरशाह के सैनिकों को मारा था। निज़ाम-उल-मुल्क और कमरुद्दीन की विनयपूर्वक प्रार्थना पर नादिरशाह ने कत्ले-आम रोकने का आदेश दिया। गलियां शवों से भरी पड़ी थी। नादिरशाह के आदेश पर उन्हें इकट्ठा किया गया और बिना किसी धर्म के भेदभाव के उनको जला दिया गया।
शहर की नाकाबंदी कर दी गयी। लोग अपने घरों में भूख से मरने लगे। नादिरशाह ने उन्हें फरीदाबाद से अन्न खरीदने की अनुमति दी।
दिल्ली की भुखमरी और बेहिसाब कर
अब नादिरशाह ने लूट खसोट शुरू की। सभी अमीर गरीबों पर हैसियत के हिसाब से चंदा लगाया गया। हर घर को अपनी संपत्ति की सूची बनाने को कहा गया। संपत्ति स्वामियों को आधी संपत्ति सैनिकों को देने को कहा गया। गड़े धन के लिए मकानों के फर्श खोदे गए। इस तरह नादिरशाह को कोई 70 करोड़ की संपत्ति हाथ लगी। उसने तख्ते-ताउस (मयूर सिंहासन) का कोहिनूर हीरा भी छीन लिया और 16 मई 1739 ई. को उसने मुहम्मदशाह के सिर पर हिन्दुस्तान का ताज रखा. Nadirshah looted Dilli
लौटते वक्त नादिरशाह अपने साथ सर्वोत्तम संगतराश, बढ़ई, राज, सुनार, और शिल्पकार भी ले गया. उसे 1000 हाथी, 7000 घोड़े, 10000 ऊंट, मुग़लहरम की सैकड़ों सुंदरियाँ विजेता के रूप में मिली। उसने फारस लौट कर तीन वर्षों तक अपने नागरिकों पर कोई कर नहीं लगाया क्योंकि उसका खजाना दिल्ली की लूट से भर चुका था।
Leave a Reply